पिअवा कहलस पदनी, त लौट्ल भाग बोल गलती कहतानी

ई त उहे बतिया कहल भइया जवन तुलसी दास जी कहले बाड़े जे ” मुदहुँ आंख कतहुँ कछु नाहीं ” परयागराज में रहनी त एक जगहिं पर पं रामकिंकर जी के परबचन रहे। विसवास ना करब भइया! उहाँ के तीन दिन एहि के बियाखिया कईनी। बाड़ा गियान जीवन जिये के मिलल। जब कवनो काम अपना कुल्हि अकिल लगवला का बादो ना बुझाई त तहरे जुगुतिया काम करी हो भइया, ना त उहे होइ जे तर धइली छ्तिनी ऊँपर धइली साग, पिअवा कहलस पदनी, त लौट्ल भाग बोल गलती कहतानी।